(पार्ट __1 )_
@ (चिड़िया की कविता )
पीपल की ऊंची डाली 🌳 पर बैठी है।
तुम्हे ज्ञात 🏵️अपनी बोली मैं क्या संदेश सुनाती है
चिड़ियां बैठी 🐧 प्रेम प्रीति कि रोही हमे सिखालती हैं
वह जग के बंदी मानव 🧍को मुक्ति मंत्रा बतलाती है
वन में जितने पंछी 🐧🕊️है खंजन. कपोत , चातक कोकिल।
काक , हंसे , शुक आदि , वास करते सब आपस 👯🧑🤝🧑👭मै हिलमिल।
सब मिल _ जुलकर रहते हैं 👭🧑🤝🧑👯 सब मिल__ जुलकर खाते हैं। आपस ही उनका घर है , जहां चाहते जाते हैं।
उनके मन में लोभ नही ❌है,
पाप नहीं परवाह ❌नहीं।
जग का सारा माल हड़पकर जीने को भी चाह नही❌ ।
जो मिलता है , अपने श्रम से 🤱 उतना भर ले लेते हैं ।
बच जाता तो आरो 👪 के हित उसे छोड़ वे देते हैं 🍎
सीमाहीन गगन में उड़ते 🐧निर्भर विचरण करते हैं । नही कमाई से ओरो की अपना घर 🏫वे भरते हैं ।
वे कहते हैं __ सीखो, तुम स्वच्छंद ओर किंयो तुमने डाली🌳 है बेड़ी पग में ।
पीपल की डाली🌳 पर चिड़िया अहि सुनाती आती है। बैठी घड़ी🕜। भर , हमे चकितकर गाकर फिर उड़ जाती हैं।🐧
2 ( पार्ट__ 2 )__ @
तुम कल्पना करो। )।
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो, तुम कल्पना करो।
अब घिस गई समाज को तमाम नीतियां अब घिस गई मनुष्य 🧍 की अतीत। रिटिया हैं दे रही चुनौतियां निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिए तुम कल्पना करो ,। नवीन कल्पना करो ,। तुम कल्पना करो।
जंजीर टूटती कभी न अक्षू _ घर से दुःख दर्द। से दूर भागते नही दुलार से हटती न दासता पुकार से गुहार से इस गड्डी __ तीर बैठ आज राष्ट्र _ शक्ति की तुम कमाना करो , किशोर कामना करो ,। तुम कल्पना करो।
जो तुम गए, स्वदेश की जवानियो गई चितौड़ के प्रताप की कहानियां गई आजाद देस _ रक्त की रवानिया गई अब सूर्य __ चंद्र से स्मिंड्री त्रिद्री सिंद्री को तुम यायना करो। दरिद्र याचना करें तुम कल्पना करो ।
(पार्ट __ 3 ) __
(बाल __लीला )।
भोर भाए गीयन के पिछे , मघुवन मोहि पठायो।
चार पहर बांसीवाट भटकियों , सांझ परे घर आयो।
मै बालक बहियान को छोटी केही विधि पायो।
ग्वाल __ बाल सब बैर परे है , बरबस मुख लपटायो।
तू जननी मन कि अति भोरी , इनके कहि प्तियाओ।
जिर तेरे कुछ भेद उपजिहे , जानि परायों जयो।
यह, ली अपनी लकुटी कमरिया, बहुतही नाच मचायो।
सूरदास, तब बिहांसी ज्जासोड़ा, लें उर कंठ लगायो।
(पार्ट __4 )
(रहीम के दोहे। )
1 : _ जो रहीम उत्तम प्रकृति , का करी सकत कुसंग ।
चंदन विष व्याप्त नहि , लपटे राहत भुजंग।
2 : _ रहिमन निज मन की वाय्था , मन ही रखो गोय।
सुनी अथिलेहे लोग सब, बांटी न लहे कोय।
3 : _। रहिमन धागा प्रेम का , मत तोरेऊ चटकाए।
जोड़े से फिर न जुरे , जूरे गाँठी पूरी जाय।
4 :_। ट्रूवार फल नहि खात है , सर्वर पियह्ही न पानी।
कही रहीम पर काज हिट , संपत्ति सनचाही सूजन।
5 : _। रहीम देखे बड़ेगे को , लाधू न दिजे दारी ।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारी।।
6 : _ रहिमन वे नर मर चुके, हैं , जे कन्हू मंगाना जाहि। उतने पहिले वे मुई, जिन मुख निकसत नाही ।।
7 : __। यो रहीम सुख होते हैं , उपकारी के संग।
बटनवेयर को लगे , ज्यों मेहंदी का रंग।।
8 : __। कराज धीरे होते हैं, काहे होते आदिर समय पाई ट्रूवर फले, केतक सोंचो नीर ।।
Rakesh Kumar __ 11 _ Aug _ 2022
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